wordsurlikariprepairpunakanta SHA रसराज २५७ उदाहरण कानन लौं लागे, मुसकान प्रेम-पागे, लौने , ___लाज भरे लागे लोल' लोचन अनंग ते ; भारु धरि भुजनि डुलावति चलत मंद , ___ और ओप उलहत उरज उतंग ते। 'मतिराम' जोबन -पवन की झकोर आय , बढिकै सरस रस तरल तरंग ते ; पानिप अमल की झलक झलकन लागी , ___ काई-सी गई है लरिकाई कढ़ि अंग ते ॥ २२ ॥ इतै-उतै सचकित चितै चलत डुलावत बाँह । दीठि बचाइ सखीन की छिनकु निहारति छाँह ॥ २३ ॥ नवोढ़ा-लक्षण मुग्धा जो भय लाजयुत रति न चहै पति-संग। ताहि नवोढ़ा कहत हैं जे प्रबीन रसरंग ॥ २४ ॥ उदाहरण साथ सखी के नई दुलही को, भयो हरि कौ हियो हेरि हिमंचल ; आय गए 'मतिराम' तहाँ घरु', जानि इकंत अनंद ते चंचल । १ बिलसति, २ भुज को, ३ के पवन, ४ बाढ़त, ५ चलै झुलावति, ६ डीठि, ७ निरीखति, ८ घर, ९ अनंदित चंचल, अनंद सों चचल। ___छं० नं० २२ ओप=शोभा । काई वर्षा-ऋतु में जलाशयों में एक प्रकार की बेलि फैल जाती है, उसको काई कहते हैं। छं. नं० २५ "भयो हरि को हियो हेरि हिमंचल"=दुलहिन को देखकर कृष्णचंद्र हिमाचल के समान अचल और शीतल हो गए, अर्थात् सौंदर्याधिक्य देखकर वह जहाँ-के-तहाँ खड़े रह गए और आनंद से उनका हृदय शीतल हो गया।
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