चढ़ी अटारी बाम' वह कियो प्रनाम अखोट ।
तरनि-किरन ते दृगन कौं कर-सरोज की ओट ।।७५॥
लक्षिता-लक्षण ।
होत लखाय सखीन कौं पिय सौं जाको प्रेम ।
ताहि लच्छिता कहत हैं कबि-कोबिद करि नेम ॥७६॥
उदाहरण
आई हो पायें दिवाय महावर कुंजन तै करिके सुख-सैनी ;
साँवरे आजु सँवारयो है अंजन, नैनन को लखि लाजति ऐनी ।
बात के बूझत ही 'मतिराम' कहा करिए यह भौंह तनैनी;
मँदि न राखत प्रीति भट, यह गंदी गुपाल के हाथ की बैनी
॥७७॥
सतरौहीं भौंहन नहीं दुरै दुरायो नेह ।
होत नाम नंदलाल के नीपमाल-सी देह ॥७८।।
कुलटा-लक्षण
जो चाहत बहु नायकन, सरस सुरति पर-प्रीति ।
तासौं कुलटा कहत हैं, लखि ग्रंथन की रीति ॥७९॥
उदाहरण
अंजन दै निकसै नित नैनन, मंजन कै अति अंग सँवारै ;
रूप-गुमान-भरी मग मैं पग ही के अंगूठा-अनौट सुधारै ।
१ बाल, २ निखोट, ३ भटू , ४ अली, ५, गूंधी, ६ दीपमाल ।
छं० नं० ७७ सुख-सैनी-सुख-पूर्वक शयन-कार्य । साँवरे=कृष्ण ।
ऐनी=एणी, हरिणी। भटू बाला । गूंदी=गुही हुई, बनाई हुई।
महावर तन-स्वेद से फैला है, कज्जल अश्रु सात्त्विक के कारण बहकर
आँखों के बाहर फैल गया है, तथा पीड़ा के डर से नायक ने वेणी ढीली
बाँधी है । छं० नं० ७८ नीप-कदंब । नीपमाल-सी देह रोमांच-युक्त
शरीर।
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मतिराम-ग्रंथावली