Samasan रसराज २६९ जोबन के मद सौं 'मतिराम' भई मतवारिनि लोग निहारै'; जाति चली यहि भाँति गली२, बिथरी अलकै अँचरा न सँभारै ॥८ ॥ मोह मधुर मुसकानि सौं, सबै गाम के छैल । सकल सैल, बन, कुंज मैं, तरुनि सुरति की सैल ॥८१॥ - मुदिता-लक्षण चित चाही सुन बात लखि मुदित होय जो बाल। तासौं मुदिता कहत हैं कबि 'मतिराम' रसाल ॥२॥ उदाहरण मोहन तैं कछु द्योसन मैं ‘मतिराम' बढ़ यो अनुराग सुहायो ; बैठी हुती तिय मायके मैं ससुरारि को काहू सँदेसो सुनायो। नाह के ब्याह की चाह सुनी हिय माँहि उछाह छबीली के छायो; पौढ़ि रही पट ओढ़ि अटा दुख को मिस के सुख बाल छिपायो। बिछुरत रोवत दुहुन कौ, सखि यह रूप लखै न । दुख-अँसुवा पिय-नैन हैं, सुख-अँसुवा तिय-नैन ॥८४॥ पहली अनुसयना-लक्षण केलि करे जहँ कंत सौं, सो थल मिटयो निहारि। कहि अनुसयना तासु सो, सोच करे बर नारि ॥८॥ १ मतवारी न अंग सँभार, २ अली, ३ उर धारै, ४ बात, ५. मिसु के। __छ० नं० ८३ दुख को मिस के सूख बाल छिपायो नायिका ने प्रकट तो यह किया कि नायक के दूसरे विवाह से मुझे दुःख है पर असल में उसे सुख हुआ पर इस सुख को उसने छिपाया । छं० नं० ८४ दुख-असुवा, सुख-असुवा=दुख के आँसू गरम और सुख के ठंढे माने गए हैं।
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