२८२ मतिराम-ग्रंथावली -- - । विप्रलब्धा-लक्षण मिलन आस करि जाय तिय, मिले न पिय संकेत । बिप्रलब्ध सो जानिए, बिरह-बिकल बिन चेत' ॥१४४॥ मुग्धा-विप्रलब्धा-उदाहरण आलिनि को सुख मानिबे कौं पिय प्यारे की सेज गई चलि बागै ; छाय रह्यो हियरा दुख सौं जब देखे न ह्वाँ नंदलाल सभागै । काहू सों बोल कछू न कह्यो, ‘मतिराम' न चित्त कहूँ अनुरागै । खेलति खेल सहेलनि मैं पर खेल नवेली कों जेलु-सो लागै ॥१४५॥ लख्यो न कंत सहेट मैं, लख्यो नखत को राय । नवल बाल को कमल-सों, गयो बदन कुँभिलाय ॥१४६॥ ___ मध्या-विप्रलब्धा-उदाहरण केलि के मंदिर देखो न लाज को बाल के दाहन अंग दहे हैं; भौंह चढ़ाय सखी सो लख्यो, 'मतिराम' कछुन कुबोल कहे हैं। भूलि हुलास-बिलास गए दुख तें भरि के अँसुवा उमहे हैं; ईछन-छोरन तें न गिरे मनु तीछन छोरन छेद रहे हैं ॥१४७॥ १ (क) आप जाय संकेत मैं, मिले न जाको पीय ; ____ताहि बिप्रलब्धा कहत, सोच करत अति जोय । (ख) लखै न पियहि सहेट मैं, होई बिकल जो बाल ; बिप्रलब्ध तासों कहैं, जे कमि सुमति-रसाल । २ प्रीति, ३ सेल, ४ सखीन लख्यो, ५ कोरन । ___छं० नं० १४५ आलिनि को सुख मानिबे कौं=सखियों को खश करने के लिये । जेलु-सों लाग=बंधनमें पड़ी हुई-सी समझती है । छं० नं० १४६ नखत को राय= चंद्रमा । छं० नं० १४७ ईछन छोरन तें... तीछन छोरन छेद रहे हैं =आँसुओं के बूंद नेत्र से नहीं गिरे मानो तीक्ष्ण नेत्र-कटाक्षों में भिदकर रह गए हों। ईछन ईक्षण, आँख । तीछन= तीक्ष्ण, तेज। Saaman
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