पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२८७

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रसराज ____२८३ ॥ तिय को मिलो न प्रान-प्रिय' सजल जलद, तन-मैन । सजल जलद लखि के भए सचल जलद-से नैन ॥१४८।। प्रौढ़ा-विप्रलब्धा-उदाहरण सकल सिँगार साज संग लै सहेलिन कों, संदरि मिलन चली आनँद के कंद कों; कबि 'मतिराम' यग' करति मनोरथनि, पेख्यो परजंक पै न प्यारे नँदनंद कों। नेह ते लगी है देह दाहन दहत गेह, बाग को बिलोकि द्रुम-बेलिन के बृद कों; चंद को हँसत तब आयो मुखचंद अब, ___चंद लाग्यो हँसन तिया के मुखचंद कों॥१४९॥ लख्यो न मंदिर केलि के पिय-रुचि-बिजित अनंग। नैन-करन तें जल-बलय गिरे एक ही संग ।।१५०।। . परकीया-विप्रलब्धा-उदाहरण चली ‘मतिराम' प्रानप्यारे को मिलन घात, नैसूक निहारि कै बिसारि काज घर कौ; पियरो बदन दुख हियरे समाय रह्यौ, .. ___ कुंजन में भयो न मिलापु गिरिधर कौ; .१ पति, २ तिय, ३ साँझ ही, ४ बाल। छं० नं० १४८ सजल जलद जलपूर्ण मेघ । छं० नं० १४९ चंद को हँसत...."तिया के मुखचंद कों=जब नायिका जा रही थी तो विह- सितवदना थी। उसकी छवि देखकर चंद्रमा लजाता था, पर जब वहाँ नायक न मिला, तो उसका मुख म्लान हो गया और ऐसा जान पड़ने लगा मानो चंद्रमा उसका उपहास कर रहा है। छं० नं० १५० पिय- रुचि-बिजित अनंग=जो प्रिय को मिलने की इच्छा रखती हुई कामदेव के वश में थी।