- २८६ मतिराम ग्रंथावली RAINRISHRA eHidism Ta HTTER e mann... nts । कहाँ रहो आयो सखी, पीय पहर जुग मैन । अधनिकरे अखरानि सों, बाल बदन ते बैन ॥१६०॥ प्रौढ़ा-उत्कंठिता-उदाहरण कैयो घरी निसि बीति गई अरु, मेह चहूँ दिसि आयो' उनैहै; अंग सिँगार के बैठी है, साँवरे रावरी बाट बिलोकति । बैठे कहा 'मतिराम' रसाल हो राति मनावत ही पुनि जैहै; जाहु न बेगि तिहारी पियारी सु दोसु बिहारी हमें पुनि दैहै ।। १६१॥ पीव न आयो ध्यान के मुंदे लोचन बाल । पलक उघारी पलक में आयो होय न लाल ॥१६२॥ परकीया-उत्कंठिता-उदाहरण जमुना के तीर बहै सीतल समीर तहाँ , ___ मधुकर करत मधुर मंद सोर हैं; कबि ‘मतिराम' तहाँ छबि सौं छबीली बैठी, अंगन ते फैलत सुगंध के झकोर हैं। पीतम बिहारी की निहारिबे को बाट ऐसी, . चहूँ ओर दीरघ दृगनि करी दौर हैं; एक ओर मीन मनो, एक ओर कंज-पुंज, एक ओर खंजन, चकोर एक ओर हैं ॥१६३।। RAND १ आए, २ तेरियै, ३ चलि, ४ बहु, ५ जहाँ। छं० नं० १६० कहाँ रहो आयो सखी ‘बाल बदन ते बैन नायिका सखी से पूछती है कि आधी रात हो गई पर नायक क्यों नहीं आया, पर उसके पूछने का ढंग विचित्र है। उसके मुंह से जो वचन निकलते हैं उनके अक्षर अस्पष्ट (अधनिकरे) हैं। इससे समान लाज और काम का पता चलता है और मध्यत्व स्पष्ट हो जाता है। छं० नं० १६३ चहूँ ओर दौर हैं=विशाल नेत्रों से नायिका चारों ओर देखती है ।
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