सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९०
मतिराम-ग्रंथावली

२९० मतिराम-ग्रंथावली wap s opana h IMAGESMARDOINTIMATERIATTACHMELESCEMEER indiimmmmmamta सामान्या-बासकसज्जा-उदाहरण सेत सारी सोहत उजारी मुखचंद की-सी, महलनि मंद मुसक्यान की महमही; अँगिया के ऊपर है उलही उरोज-ओप, उर 'मतिराम' माल मालती डहडही। माँजे मंजु मुकुर-से मंजुल कपोल गोल, ____गोरी की गुराई गोरे गातन गहगही; • फूलनि की सेज बैठी दीपति फैलाय लाय, - बेला को फुलेल, फूली बेलि-सी लहलही ॥१७६॥ सुंदरि सेज सँवारि के साजे सकल' सिँगार। दृग कमलन के द्वार पै, बाँधे बंदनवार ॥१७७।। स्वाधीनपतिका-लक्षण सदा रूप-गून रीझि पिय जाके रहे अधीन । स्वाधीनैपतिका तियै, बरनत कबि परबीन ॥१७८।। ___ मुग्धा-स्वाधीनपतिका-उदाहरण आपने हाथ. सों देत महावर, आप ही बार सँवारत नीके; आपून ही पहिरावत आनि कैं, हारि सँवारि कै मौरसिरी" के। हो सखी! लाजनि जात मरी', मतिराम' सुभाव कहा कहों पीके; लोग मिलें, घर घेरु करै, अबही ते ये चेरे भए दुलही के॥१७९।।

१ है, २ शकल, ३ स्वधिनपतिका नायिका, ४ सिँगारत, ५ मौल-

सिरी, ६ गड़ी। छ० नं० १७६ माँजेमंजु मुकुर-से सुंदर और स्पष्ट दर्पण के समान । महमही, डहडही, गहगही और लहलही के क्रम से अर्थ हैं, सुगंधित, हरी-भरी, प्रफुल्लित और बहारदार एवं तरोताजा। छं० नं० १७९ मौरसिरी-मौलश्री-पुष्प-विशेष । लाजनि जात मरी=मारे लज्जा के मरी जाती हूँ। घर धैरु करै घरों में चवाव करते हैं। ।