सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९२
मतिराम-ग्रंथावली

- २९२ मतिराम-ग्रंथावली परकीया-स्वाधीनपतिका-उदाहरण मो जुग नैन-चकोरन कौं यह रावरो रूप सुधा ही को नबौ ; कीजै कहा कूलकानि तें आनि, परयो अब आपनो प्रेम छिपैबौ। कंजनि में 'मतिराम' कहँ निसि-द्योसह घात परें मिलि जैबौ; लाल सयानी सखीन के बीच निवारिए ह्याँ की गलीनको ऐबौ। १८५॥ विषम लोग ब्रज-गाम के लाल! बिलोको बास । बढ़ि जैहै इन दृगन के हाँसहि ते उपहास ॥१८६॥ - सामान्या-स्वाधीनपतिका-उदाहरण । बारन बार सँवारि सिंगारत मोतिन-हार धरै तन गोरें; पाँइ महावर देत बनाय, यौं बैनी बनावत नेह निहोरें। यौं रस-लीन रहै नित ही बस, औरन सौं दृग नाह न जोरै, लाज गिनै नहिं लोगन की पिय पाँइ परे धन देत करोरै॥१८७॥ छाँड़ि सबै सुधि सदन की रहत मदन-बस-लीन । मोही कौं धन देत हैं पिय सुजान-परबीन ॥१८८॥ मोही लगो सजनी! भलो, जाको धन-मन-प्राण । सपने हू ता पीय सौं मान भलो न सयान ॥१८९॥ १ अलीन, २ हाँसी ही। छं० नं० १८६ बिषम लोग ब्रज-गाम के उपहास=इस व्रज-गाँव के लोग बड़े कठिन हैं देखिए इन आँखों की हँसी को लेकर फिर बड़ा उप- हास होगा अर्थात् मामला बहुत बढ़ जायगा। छ० नं० १८७ बार=कंघी । छं० नं० १८९ मोहि लगो मुझी से लगा है-मुझमें ही रम रहा है। वेंकटेश्वर-प्रेसवाले 'रसराज' में यह छंद दिया है- भूषन अंबर लावत आपु रहै पहिरावन को मुख हेरे; आप ही पान खवावत आनि सहेली न आवन पावत नेरें । ता पिय सों रिस कैसे करौं 'मतिराम' कहै, सिखए सखि तेरे; पूरि रहे मनभावन के गुन मान को ठौर नहीं मन मेरे। inment PRENTISTRISAUTHEATRE Sa malamannaatmamimes SSISTANT K