बाँसुरी ताननि काम के बाननि, लैं' 'मतिराम' सबै अकुलाई;
गोपिन गोप कळू न गने, अपने-अपने घर से उठि धाई ॥२८॥
प्रथम कामिजन-मनन कौं रँगत, सरभि, रितु, राग।
मंडत है नवपल्लवनि, पुनि पीछे बन-बाग ॥२८६॥
उद्दीपन-भेद
सखी-दूतिका जानिए उद्दीपन के भेद । "
नायक अरु नायका को हरै बिरह को खेद ॥२८७।।
सखी-लक्षण
जा तिय सौं नहिं नायका कछू छिपावे बात ।
तासौं बरनत कह सखी, सब कबि मति अवदात ॥२८॥
___ सखी के काम
मंडन अरु सिच्छा-करन, उपालंभ, परिहास ।
काज सखी के जानियो, औरौ बुद्धि-बिलास ॥२८९॥
मंडन-उदाहरण
जावक रंग रँगे पगपंकज, नाह को चित्त रँगे रँगु जाते;
अंजन दै करि नैनन मैं सुखमा बढि स्याम सरोज प्रभातें।
सोने के भूषन अंग रचे, ‘मतिराम' सबै बस कीब की घातें;
यों ही चलै न सिँगार सुभावहि, मैं सखि भूलि कही सब बातें।
२९०॥
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१ सों, २ काम-कामि-जन मानि को।
छं० नं० २८६ राग=अनुराग । छ० नं० २९० सुखमा-
सुषमा शोभा । सिंगार सुभावहि स्वाभाविक श्रृंगार, ईश्वरदत्त
शरीर-सौंदर्य।
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मतिराम ग्रंथावली