सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३१७
रसराज


सखी प्रिया' की देह मैं सजे सिँगार अनेक । कजरारी अँखियान मैं भूली' काजरु एक ॥२९१॥

शिक्षा-उदाहरण

मलय पवन मंद-मंद के गमन लाग्यौ, फूलन के बदनि तें मकरंद ढारने; कबि 'मतिराम' चितचोर चारों ओर चाहि, लाग्यौ चैत-चंद चारु चाँदनी पसारने । अलिन की आली, आली मैन कैसे मंत्र पढ़ि, लागी सब माननी के मान मद झारने; सुमन सिँगार साज सेज सुख साजि करो, लाज करो आज ब्रजराज पर वारने ॥२९२।। कत सजनी है अनमनी अँसुवा भरति संसक । बड़े भाग नंदलाल सौं झूठहु लगत कलंक ।।२९३॥ उपालंभ-उदाहरण पान की कहानी कहा, पानी को न पान करै, _आहि कहि उठति अधिक उर आधि के; कबि 'मतिराम' भई बिकल बिहाल बाल, राधिके जिवावरे अनंग अवराधि कैं। १ तिया, २ भूलो, ३ माननी के री मननि मान । छं० नं० २९१ कजरारी काजर एक-नायिका के नेत्र स्वभावतः ऐसे श्याम वर्ण थे कि शृंगार करते समय सखी उनमें काजल लगाना भूल गई। छं० नं० २९२ गमन लाग्यौ=चलने लगा। अलिन की आली ‘मंत्र पढ़ि=भ्रमरों की पंक्तियाँ मानो काम दूती के मंत्र पढ़ रही हों। लाज करो आज ब्रजराज पर वारने=व्रजराज से समागम करने में आज लज्जा को आश्रय मत दो।