रसराज ३१९ - उत्तमादि त्रिविध दूती-भेद वर्णन निपुन दूतता मैं सदा दूती ताहि बखान । उत्तम, मध्यम, अधम यौं, तीन भाँति सौं जान ॥२९९।। उत्तमा दूती-लक्षण मोहै जो मृदु बोलि के मधुर बचन अभिराम । ताहि कहत कबिराज हैं उत्तम दूती नाम ॥३००॥ उदाहरण जा दिन से देखे ‘मतिराम, तुम, ता दिन तें बढ़ी रहै मुसकानि वाके जियराई पर; भावत न भोजन' बनावत न अभारन', हेतु न करत सुधानिधि सियराई पर । चलो उठि देखौ बड़े भाग हैं तिहारे अब, ____राखो धरि' राधिकै कन्हाई हियराई पर; दूनी दूति छाई देह आई दुबराई पिय, राई लौनु वारिए तिया की पियराई पर ॥३०१।।। तिय के हिय के हनन कौं भयो पंचसर बीर । लाल ! तुम्हें बस करन कौं रहे न तरकस तीर ॥३०२।। मध्यमा दूती-लक्षण कछू बचन हित के कहै बोलै अहित कछक । मध्यम दूती कहत हैं तासौं सुकबि अचूक ॥३०३॥ १ भवन, २ भूषनन, ३ नेक, ४ लला, ५ मेलि राखौ, ६ पिया । छं० नं० ३०१ जियराई-हियराई हृदय । राई लौनुपियराई पर नायिका के पीतवर्ण को देखकर उसकी कुशल कामना के लिये राई लोन (अनिष्ट-निवारक उपचार) उतारा जाना चाहिए।
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