पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३५५

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ललितललाम

ललितललाम ३५१ C oin भयो भोज सुरजन-तनै अतुल ओज' की खानि । हिंदुन की राखी सरम निज मूंछन मैं आनि ॥ २५ ॥ जेते ऐंडदार दरबार -सिरदार - सब, ऊपर प्रताप दिल्लीपति को अभंग भो; 'मतिराम' कहै करवार के कसैया केते, ____ गाड़र-से मूड़े जग हाँसी को प्रसंग भौ । सुरजन-सुत रज-लाज-रखवारो एक, भोज ही तें साहि को हकूम-पग पंग भौ; मछनि सौं राव मुख लाल रंग देखि मुख, __ औरनि को मूंछनि बिना ही स्याम रंग भौ ॥ २६ ॥ बंस-बारिनिधि-रतन भौ रतन भोज को नंद । साहनि सौं रन-रंग मैं जीत्यौ बखतबिलंद ।। २७ ॥ बिगर हथ्यारन हजूर आइबे को न, हकूम मान्यौं दिल्लीपति आलम पनाह को ; 'मतिराम' कहै दल दक्खिनी समेत, साहिजहाँ सो हटायो बीर बारिधि उछाह को। भोज को सपूत भयो फौज को सिंगार अति, _ ओज को दिनेश दुरजन दिलदाह को ; रावरतनेश कर ओट राख्यो कर वार, करि वार ओट राख्यौ कोट पातसाह को॥२८ ।। १ योग, २ जेते ये उदार दरबार, ३ गहि, ४ अरु, ५ बार। छं० नं० २६ करवार के कसया तलवार बाँधनेवाले। गाड़र= भेड़। रज-लाज रजपूती की हया, क्षत्रियोचित शौर्य । हुकुम-पंग पंग भौ=आज्ञा की अवज्ञा की गई, हुक्म नहीं माना गया। छं०नं० २७ बंस ""नंदवंश रूपी समुद्र में भोजराजा का पुत्र रत्नसिंह एक रत्न के समान हुआ। बखतबिलंद=ऊँचा इक़बाल । छंनं०२८ आलम पनाह संसार का आश्रयदाता । करि वारवार करके, हमला करके । करवार=तलवार ।