indi Sampisailai acrominecrapersCounciaTSNAPATRA MAHARASHTRA ३५२ मतिराम-ग्रंथावली भयो राव रतनेस को गोपीनाथ कुमार । सुजस अपार बखानिय, दान-कृपान-उदार ॥ २९॥ संगर में सिंह-सम कीने करिबर सुर, पुर के निवासी सूर सत्रुन के साथ के; ... कहै 'मतिराम' गज-गाँव दै निवाजि कीने, सकल निहाल जे गवैया गुन-गाथ के । राव रतनेस के कुमार के सुजस फैलि, रहे पहुमी मैं ज्यों प्रबाह गंग-पाथ के ; रीझ-खीझ-मौज-फौज-दान औ कृपान ऊँचे, . जगत बखानै दोऊ हाथ गोपीनाथ - के ॥ ३० ॥ गोपीनाथ-तनै भयो, पानिप-पारावार । सत्रुसाल' छितिपालमनि' छत्र धर्म-अवतार ॥ ३१ ॥ पंडित-सुकबि-भाट-चारन को गुन समुझैया सावधान सदा सजसं बिधान मैं ; कबि 'मतिराम' जाको तेजपंज-दिनकर, ____दुज्जन को दाहकर दस हूँ दिसान मैं । गोपीनाथ-नंद चित चाही बकसीसनि सौं, जाचक धनेस कीने सकल जहान मैं ; ज्ञान . मैं दिवान सत्रुसाल सरुगुरु, _साहिबी मैं सुरपति, सुर-तरबर दान मैं ॥ ३२ ॥ औरंग दारा जुरे दोउ जुद्ध', भए भट क्रुद्ध बिनोद बिलासी; मारू बजै मतिराम' बखान भई, अति अस्त्रनि की बरखा-सी। १ छत्र, २ छिति, ३ कहै, ४ जनेस, ५ जंग, ६ युद्ध। छं० नं० २९ दान-कृपान-उदार-तलवार का दान देने में उदार अर्थात् ज़बर्दस्त योद्धा । छं० नं०. ३२ दुज्जन=दुर्जन । ज्ञान मैं दान मैं दीवान क्षत्रसाल ज्ञान में बृहस्पति, ऐश्वर्य में इंद्र और दान देने में कल्प वृक्ष के समान थे।
पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३५६
दिखावट