पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३६०

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मतिराम-ग्रंथावली

mensteineness ENT CROSCOPTET manare a मतिराम-ग्रंथावली गाढ़े कै गड़े हैं न निसारे निसरत, मैन-बान से बिसारे न बिसारे बिसरत हैं ॥४४॥ भौंह कमान, कटाच्छ सर, समर-भूमि बिचलें न । लाज तजे हू दुहुनि के, सलज सूर-से नैन ॥४५॥ लुप्तोपमा-लक्षण होत एक द्वै तीन कों, इन चारिहु मैं लोप। . तहाँ होत लुप्तोपमा, बरनत कबि मति-ओप ।।४६॥ उदाहरण सत्ता को सपूत भावसिंह भूमिपाल जाकी, कित्ति जौन्ह करत जगत चित चाव है ; कबिन को 'मतिराम' कामतरु ऐसो कर, अंगद को ऐसो रन मैं अडोल पाँव हैं। चंद कैसी जोत, चंडकर-जैसो तेज पुर- हूत-कैसो पुहुमी मैं प्रगट प्रभाव है ; अरजुन पन, मुनि मन, धनपति धन, जगपति तन, मृगपति रन राव है ॥४७॥ मालोपमा-लक्षण जहाँ एक उपमेय कौं होत बहुत उपमान । तहाँ कहत मालोपमा, कबि 'मतिराम' सुजान ॥४८॥ s Song sasuyashasabana - छं० नं० ४५ समर भूमि रणभूमि, प्रेम (समर=स्मर) स्थल । सूर-वीर। छं० नं० ४७ सत्ता छत्रसाल । कित्ति=कीति, यश । चंडकर=सूर्य । पुहुमी पृथ्वी । पन प्रण। मृगपति=सिंह । + देखो रसराज उदाहरण स्मृति ।