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मतिराम-ग्रंथावली

५ मतिराम-ग्रंथावली Himation म perinten RITERMedaller मा drimanimemake अनन्वय-लक्षण जहाँ एक ही बात कौं, उपमेयो उपमान । तहाँ अनन्वय कहत हैं, कवि ‘मतिराम' सुजान ॥५३॥ उदाहरण सुरजन कैसी सुरजन हीं में साहिबी है, . भोज कैसी भोज में अकड़ बड़ भाल मैं ; रतनेस कैसी रतनेस मैं कहत 'मति- . राम' करतूति जीति जाके करबाल मैं । गोपीनाथ कैसी गोपीनाथ मैं सपूती भई, ____ सत्रुसाल कैसी रजपूती सत्रुसाल मैं ; भूमि सब देखी और काहू मैं न पेखी छबि, भावसिंह कैसी भावसिंह भूमिपाल मैं ॥५४॥ ___उपमेयोपमान-लक्षण जहाँ होत है परसपर, उपमेयो उपमान । तहँ उपमेयोपमा कहि, बरनत सुकबि सुजान ॥५५॥ उदाहरण बारन ते बकसै जिनकी समता न लहै बडि बिध्य समूचो; कित्ति सुधा दिगभित्ति पखारत चंद-मरीचिन को करि कूचो। राव सता-सुत कौं ‘मतिराम' महीपति क्यौं करि और पहूँचो; भूपर भाऊ भुवप्पति को मन सो कर औ कर सो मन ऊँचो । atast 4555 ५६॥ १ अगड़, २ बर, ३ ऐसी और मैं । छं नं० ५६ बिंध्य समूचो पूरा बिध्याचल पर्वत । कित्ति सुधा... कूचो कीर्तिरूपी सुधा चंद्र-किरणों की कूची बनाकर उससे दिशारूपी