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मतिराम-ग्रंथावली


तरनि मैं तेज बरनत 'मतिराम' जोति, . जगमगै जामिनीरमन मैं बिचारिए ; राव भावसिंह कहा तुम ही बड़े हौ जग, _रावरे के गुन और ठौर हू निहारिए ॥६०॥ ततीय प्रतीप-लक्षण जहाँ अनादर आन को, उपाबर्त्य' उपमेय । बरनत तहाँ प्रतीप हैं, कोऊ सुकबि अजेय ॥६१॥ उदाहरण जलधर छोडि गुमान कौं, हौं ही जीवन-दानि । तोसो ही पानिप भरचौ, भावसिंह को पानि ॥६२॥ _चतुर्थ प्रतीप-लक्षण जहाँ बर्त्य सों और को उपमा बचन न होय । ताहू कहत प्रतीप हैं, कबि-कोबिद सब कोय ॥६३॥ उदाहरण बिक्रम में बिक्रम, धरम-सत धरम मैं, धुंधमार धीर मैं, धनेस वारौं धन मैं ; 'मतिराम' कहत प्रियव्रत प्रताप मैं, प्रबल बल पृथ, पारथहि वारौं पन में; सत्रसालनंद रेयाराव भावसिंह आजू, मही के महीप सब वारौं तेरे तन मैं ; नल वारौं नैननि मैं, बलि वारों बैननि मैं, भीम वारौं भुजनि में, करन करन मैं ॥६४॥ १ पापबऱ्या, २ है, ३ को। छं० नं० ६० रतिनायक काम । तरनि=सूर्य । जामिनीरमन = चंद्रमा। छं० नं० ६२ जलधर=मेघ । जीवन-दानि =जल देने वाला। छं० नं० ६४ धरम -सुत=युधिष्ठिर । पारथ=अर्जुन । करन=कर्ण । 245152 inment । ।