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मतिराम-ग्रंथावली

आलंबन–विभाव

प्रेम-जैसा सर्व-श्रेष्ठ स्थायी भाव नायक-नायिका के आलंबन को लेकर परिपाक अवस्था को प्राप्त होता है, अतएव शृंगार-रस के आलंबन-विभाव नायक-नायिका हैं । आलंबन-विभावों में नायक- नायिका के श्रेष्ठ होने का एक कारण तो यही है कि प्रेम-जैसा सर्वोच्च स्थायी भाव इन्हीं पर आलंबित है। दूसरी विशेषता यह कि नायक-नायिका का प्रेम पारस्परिक होता है । यदि नायक नायिका पर अनुरक्त होता है, तो नायिका भी नायक पर सर्वस्व न्योछावर करने के लिये तैयार रहती है। दोनो ओर से समान आकर्षण रहता है। तीसरी विशेषता यह कि नायक-नायिका में परस्पर सहानुभूति-मात्र का भाव नहीं रहता; वरन् प्रेम के प्रभाव से नायक-नायिका का द्विधाभाव ही नहीं रह जाता है । इन्हीं आलंबन- विभावों में तन्मयता पराकाष्ठा को पहुँच पाती है। अहं-भाव के मेटने का सर्वोच्च साधन यहीं पाया जाता है। अन्य स्थायी भावों के आलंबन-विभावों में यह बात आवश्यक नहीं है। अष्टावक्र को देखकर हमें तो हँसी छूटती है, पर हमारी हँसी से अष्टावक्र को क्रोध ही होता है। गुरु के बाग़ में अकालियों के जत्थे को आगे बढ़ते देखकर पुलिस के जवानों में आक्रमण करने का उत्साह उत्पन्न होता है । वे अकालियों को पीटते हैं, पर अकालियों के भाव क्या रहते हैं । इसी प्रकार से अन्य आलंबन-विभावों के संबंध में समझना चाहिए । उधर शृंगार के आलंबन-विभावों की यह दशा है कि-

सपने हँ मनभावतो करत नहीं अपराध;

मेरे मन ही मैं रही सखी, मान की साध ।

सारांश कि अन्य रसों के आलंबन-विभावों की अपेक्षा शृंगार- रस के आलंबन-विभाव विशेष महत्त्व-पूर्ण हैं। उनमें कई विशेषताएँ ऐसी हैं, जो औरों में नहीं पाई जातीं।