पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३८६
मतिराम-ग्रंथावली

e Beneleeandnisatil ३८६ मतिराम-ग्रंथावली a entinoide ANGLA.. Liminin raula क्यौं करि धौं मुरली मनि कुंडल मोर-पखा बनमाल बिसारै ; ते धनि जे ब्रजराज लखें गह-काज करै अरु लाज सँभारें ॥१७४।। . प्रस्तुतांकुर-लक्षण प्रस्तुत करि प्रस्तुत जहाँ प्रकट होत 'मतिराम' । प्रस्तुत अंकुर कहत हैं तहाँ बुद्धि के धाम ॥१७५।। उदाहरण सुबरन-बरन सुबासजुत, सरस दलनि सुकुमार । चंपकली कौं तजत अलि, तैहीं होत गँवार ॥१७६॥ प्रथम पर्यायोक्ति-लक्षण गम्य अर्थ प्रगटै तहाँ, और बचन रचनानि । बरनत पर्यायोक्ति तहँ, कबिजन ग्रंथन जानि ॥१७७॥ उदाहरण जाके लोचन करत हैं कुबलय कंज' प्रकास । सो भाऊ भूपाल के करत हिए नित बास ॥१७८।। प्रगट दरप कंदरप को तेरो अंग अनूप । सु तौ लियो कंदर्प जिति सुंदर स्याम सरूप ॥१७९॥ द्वितीय पर्यायोक्ति-लक्षण जहाँ कपट सौं करत है रुचिर मनोरथ काज । बरनत पर्यायोक्ति तहँ दूजी सुकबि समाज ॥१८०॥ उदाहरण मनमोहन आय गए तित ही, जित खेलति बाल सखीमन' मैं ; तहँ आपु ही मूंदे सलोनी के लोचन , चोर-मिहीचनी खेलनि मैं। दुरिबे कौं गई सगरी सखियाँ', 'मतिराम' कहै इतने छन मैं; मुसकाय के राधिके कंठ लगाय, छिप्यौ कहूँ जाय निकुंजन मैं । १८१॥ १ कमल, २ करो हिए निज, ३ नंदलाल, ४ जहं, ५ जन, ६ नैन, ७ लला, लरिकाई, ८ सहेली गईं सिगरी।