पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४११

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ललितललाम ४०७ ajornament द्वितीय समुच्चय-लक्षण बहसि करत बहु हेतु जहँ एक काज की सिद्धि । इहौ समुच्चय कहत हैं जिनकी है मति सिद्धि' ॥२७९।। उदाहरण कुंदन के आँग माँग मोतिन सवारी सारी, सोहत किनारीवारी केसरि के रंग की ; कहै 'मतिराम' मनि मंजुल तरौना छोटी, नथुनी बिराजै गजमुकतन संग की ; कुसुम के हार हियो हरति कुसभी आँगी, सकै को बरनि आभा उरज उतंग की ; जोबन जरब महा रूप के गरब गति, मदन के मद मद मोकल मतंग की ॥२८०।। कारक-दीपक-लक्षण एकहि मैं क्रम सौं भए, तिनको गुफ ज होय । सो कारक-दीपक कह्यौ, कबिन ग्रंथ मत जोय ॥२८१॥ उदाहरण फिरि-फिरि आवति जाति भजि राति मधुर मुसकाति। बाल लाल को ललित मुख लखि ललचाति लजाति ॥ २८२॥ समाधि-लक्षण और हेतु के मिलन ते सुकरु होत जहँ काज । बरनत तहाँ समाधि है सकल सुकबि सिरताज ॥२८३॥ m Jee JUMBAND १ रिद्धि, २ अँगराति । छं० नं० २८० ऑग=अंग । जरब-ज़रब=चोट ।