पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४१२

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मतिराम-ग्रंथावली

४०८ मतिराम-ग्रंथावली C K meroinpram DISTRI LaadTARSHAN MarathisruaracintervmanireedMmmerimes om उदाहरण आयो बसंत रसाल प्रफुल्लित कोकिल-बोलनि स्रौन सुहाई ; भौंरनि को 'मतिराम' किये गुन काम,प्रसून-कमान चढ़ाई। रावरो रूप लग्यौ मन मैं, तन मैं तिय के झलकी तरुनाई ; धीर धरौ अकुलात कहा, अब तो बलि बात सबै बनि आई ।। २८४॥ प्रत्यनीक-लक्षण प्रबल सत्रु के पक्ष पर, जहँ बिक्रम उल्लास। प्रत्यनीक तासौं कहत, कबिजन बुद्धि-बिलास ॥२८५।। उदाहरण तो मुख छबि-सौं हारि जग भयो कलंक समेत । सरद-इंदु अरबिंदमुखि अरबिंदनि दुख देत ॥२८६॥ काव्यार्थापत्ति-लक्षण जो पै जीतौ यह कहा',इहिंबिधि जहाँ बखान । कहत काब्य पद सहित तहँ', अर्थापत्ति सुजान ॥२८७॥ उदाहरण बिंब-से अरुन अति अमल अधर पर, ____मंद बिलसत चारु चाँदनी सुबास है ; . कासौं जाय बरनि बनक नाक बेसरि की, ललित बिलोकनि पै बिबिध बिलास है ; कबि 'मतिराम' पाय सहज सुबास आस, भौंरनि की भीर न तजत आस-पास है ; कहा दरपन कैसैं पावत बदनजोति, चंद जाको चेरो अरबिंद जाको दास है ॥२८८॥ १ पावै यो तो यह कहा, २ हित, ३ पद, ४ सुहासु । छं० नं० २८४ गुन=रस्सी । बलि=बलिहारी जाऊँ । इस छंद में कालिदास-कृत ऋतुसंहार के एक श्लोक का भाव है ।