अर्थातरन्यास - लक्षण
कहि बिसेष सामान्य पुनि, के सामान्य बिशेष ।
सो अर्थातरन्यास हैं, बरनत मति उल्लेष ॥ २८९ ॥
उदाहरण
रावरे नेह कौं लाज तजी अरु गेह के काज सबै बिसराए ;
डारि दियो गुरु लोगनि को डर गाँव चवाय मैं नाँव धराए ।
हेत कियो हम जो तो कहाँ तुम तो 'मतिराम' सबै बहराए ' ;
कोऊ वकतेक उपाय करौ कहूँ होत हैं आपने, पीव पराए ।।२९०॥*
गुन औगुन कौं तनकऊ प्रभु नहि करत बिचार ।
केतकि कुसुम न आदरत हर सिर धरत कपार ॥ २९१ ॥
बिकस्वर-लक्षण
कहि बिसेष सामान्य पुनि, कहिए बहुरि बिसेष ।
कहत बिकस्वर नाम तह, जे कबि अति मति लेष ।। २९२ ॥
उदाहरण
मधुप मोह मोहन तज्यौ, यह स्यामन की रीति ।
करौ आपने काज लौं, तुम्हैं भाँति सौं प्रीति ॥ २९३ ॥
प्रौढोक्ति-लक्षण
जो अहेतु उत्कर्ष को, ताहि बखानत हेत ।
प्रौढ़ो कति तास कहत, जे कबि सुमति सचेत ॥ २९४ ॥
उदाहरण
गंग-नीर बिधु-रुचि झलक, मृदु मुसकानि उदोति ।
कनक-भौन के दीप लौं, जगमगाति तन-जोति ॥ २९५॥
१ बिसारिए, २ सौ, ३ तुम जाति सौं, ४ प्रोढ़ उकति । * देखो रसराज उदाहरण परकीया खंडिता ।