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मतिराम-ग्रंथावली

मतिराम-ग्रंथावली संभावन-लक्षण जो यौं होय तु होय यौं, जहँ संभावन होय । संभावन तासौं कहत, बिमल ज्ञान मतिधोय ॥२९६॥ उदाहरण चलत सुभाय पाय पैजननि की झनक, उर उपजन लागे केलि के कलोल हैं; फूलनि के हार हियरे सौं हिरकनि लागे, छलकन रस नैन तामरस लोल हैं; स्रौन के सरोज के परस 'मतिराम' लाल, कटकित होन लागे कोमल कपोल हैं; तौ बनै बनाव मिलै जोबन मैं कहूँ नीके', लोचन के, जोबन के बासर अमोल हैं ॥२९७॥ मिथ्याध्यवसति-लक्षण एक झुठाई सिद्ध कौं झंठो बरनत और । तहँ मिथ्याध्यवसाय कौं कहत सुमति मति-दौर ॥२९८॥ उदाहरण खल-बचननि की मधुरता चाखि साँप निज' स्रौन । रोम-रोम पुलकित भए कहत मोद गहि मौन ॥२९९॥ ललित-लक्षण बय॑ बाक्य के अर्थ को, जहँ केवल प्रतिबिंब । प्रस्तुत मैं बरनत ललित, निर्मल मति बिधु बिंब ॥३०॥ उदाहरण मेरी सीख सिखै न सखि मोसौं उठै रिसाय। सोयो चाहत नीद भरि सेज अँगार बिछाय ॥३०१॥ १ सोय, २ वाके, ३ यौं, ४ अंग ।