पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४१६

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४१२
मतिराम-ग्रंथावली

४१२ CAMERACCOUND RAKAR मतिराम-ग्रंथावली तृतीय प्रहर्षण-लक्षण जहाँ अर्थ की सिद्धि को जनतहि ते फल होय । इहौ प्रहर्षन कहत हैं कबि-कोबिद सब कोय ॥३०८॥ उदाहरण हरि की सुधि कौं राधिका चली अली के भौन । हँसत बीच ही मिलि गए बरनि सकै कबि कौन ॥३०९॥ विषाद-लक्षण मन इच्छित के अर्थ की प्रापति जहाँ बिरुद्ध । तहाँ बिषादहि कहत हैं जे कबिजन मति सुद्ध ॥३१०॥ उदाहरण आवत मैं हरि कौं सपने लखि, नैसुक बाट सकोचन छोड़ी ; आगे है आड़े भए 'मतिराम' चली सचितै चष लालच ओड़ी। ओउनि को रस लैन कौं मोहन, मेरी गही कर कंपत ठोड़ी ; और भटू न भई कछ बात, गई इतने ही मैं नींद निगोड़ी। ३११॥ उल्लास-लक्षण औरै के गुन-दोष ते, औरै को गुन-दोष । बरनत यौं उल्लास हैं, जे पंडित मतिकोष ॥३१२॥ गुण से गुण-उदाहरण गुच्छन के अवतंस लसै सिषि-पच्छनि अच्छ किरीट बनायो ; पल्लव लाल समेत छरी कर पल्लव-से 'मतिराम' सुहायो । गुंजन के उर मंजुल हार निकुंजनि ते कढ़ि बाहिर आयो ; आजु को रूप लखे ब्रजराज को आजु ही आँखिन को फल पायो। ३१३॥ देखो रसराज उदाहरण स्वप्न-दर्शन । देखो रसराज उदाहरण नायक ।