पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४२३

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ललितललाम गूढ़ोत्तर-लक्षण अभिप्राय सौं सहित जो उत्तर कोऊ देय । तिहिँ गूढ़ोत्तर कहत हैं सुकबि सरस्वति सेय ॥३४८।। .. उदाहरण ग्वालिन देहु बताइ हौं, मोहिं कछू तुम देहु । बंसीबट की छाँह मैं, लाल जाय लखि लेहु ॥३४९।। प्रथम चित्र-लक्षण, जहँ बूझत कछु बात कौं, उत्तर सोई बात । चित्रकहत ‘मतिराम कबि', सकल सुमति अवदात ॥३५०।। उदाहरण सरद-चंद की चाँदनी, को कहिए प्रतिकुल ? सरद-चंद की चाँदनी, कोक हिए प्रतिकूल ॥३५१॥ द्वितीय चित्र-लक्षण बहुती बातनि को जहाँ उत्तर दीजे एक । चित्र बखानत हैं तहाँ कबि जन बुद्धिबिबेक ॥३५२।। उदाहरण को हरि-बाहन जलधि-सुत, को है ज्ञान-जहाज । तहाँ चतुर उत्तर दियो, एक बचन द्विजराज ॥३५३।। इस सूक्ष्म-लक्षण जानि पराए चित्त की ईहा जो आकूत । होय जहाँ, सूच्छम तहाँ कहत सुकबि पुरहूत ॥३५४॥ छं० नं० ३५१ कोक=चकवा । छं० नं० ३५३ हरि-बाहन = गरुड़ =द्विजराज । जलधि-सुत=चंद्रमा=द्विजराज । ज्ञान-जहाज= ब्राह्मण-द्विजराज । छं० नं० ३५४ ईहा=इच्छा। आकृत चेष्टा समेत आशय समझाने का उद्योग ।