पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२० मतिराम-ग्रंथावली PRESESHISHESAwarenessmat NEEMALESENTERTAproJANEndemnudesaidiodaunl inalonlincarnanatomiporairmir उदाहरण लाल सखीनि मैं बाल लखी 'मतिराम' भयो उर आनँद भीनौं; हाथ दुहनि सौं चंपक गुच्छिनि को जुग छाती लगाय के लीनौं । चंद-मुखी मुसकाय मनोहर हाथ उरोजनि अंतर दीनौं ; आँखनि मूंदि रही मिसि कै ढाँपि निचोल को अंचल कीनौ।।३५५।। पिहित-लक्षण जानि पराई बृत्ति जहँ, क्रिया सहित आकूत । तहाँ पिहित बर्नन करत, जे कबि सुमति सपूत ॥३५६।। उदाहरण और तिया सँग कुंजबिहारी रह्यौ निसि मैं बसि के रसभीनौ; प्रात समै ‘मतिराम' बखानत राधिका-मंदिर आवन कीनौ । बोली न बोल कळू लखि कै घनसुंदर को पट नील नबीनौ ; अंबर केसरि रंग रँग्यौ मुसकाय के मोहन के कर दीनौ॥३५७॥* व्याजोक्ति-लक्षण और हेतु बचननि' जहाँ, आकृति गोपन होय । ब्याज उक्ति तहँ कहत कबि. ग्रंथ-समुद्र बिलोय ॥३५८॥ mers १ रचननि । छं० नं० ३५५ निचोल=ऊपर से ढकने का वस्त्र । भावार्थ-- नायक ने दो चंपक पुष्पों के गुच्छों को छाती से लगाकर प्रकट किया कि मैं तेरा आलिंगन करना चाहता हूँ । नायका ने उरोजों के नीचे हाथ ले जाकर बताया कि तुम हृदय में बसते हो, आँख मूंदकर जाहिर किया कि रात को मिलना (कमल बंद होने पर) और रात में किस समय मिलना होगा यह बात मुख पर परदा डालकर प्रकट की गई अर्थात् जब चंद्रमा अस्त हो जाय (मुखचंद्र छिप जाय) ।

  • देखो रसराज उदाहरण उत्तमा नायिका ।

SRIGANSAR