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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४२५

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ललितललाम ४२१ उदाहरण लैन गई हुती बागहिं फूल अँध्यारी लखे डर बाढ़यौ तहाँई ; रोम उठे तन कंप छ्टयो 'मतिराम' भई स्रम की सरसाई । बेलिनि सौं उरझी अँगिया छतियाँ अति कंटनि की छतछाई; देह मैं नेकु सम्हार रह्यौ नहीं ह्याँ लगि भागि मरू करि आई। ३५९॥* गूढोक्ति--लक्षण कहिबे जो कछु और सों कहै और सों बोल । गूढ़ उक्ति' तासों कहत जिनकी बुद्धि अमोल ॥३६०॥ उदाहरण यौं न प्यार बिसराइए, लई मोहि तैं मोल । मुख निरखत नंदलाल को, कहै सखी सौं बोल ॥३६१।। विवृतोक्ति-लक्षण . जहाँ श्लेष सों, गुप्त सों,, सुकबि प्रकासत अर्थ । विवृतोक्ति तहँ कहत हैं, जे कबि सुमति समर्थ ।।२६२॥ उदाहरण आई है निपट साँझ, गैया गई घर माँझ, हातै दौरि आई कहै, मेरो काम कीजिए; हौं तो हौं अकेली और दूसरो न देखियत, बन की अँध्यारी सौं अधिक भय भीजिए। कबि 'मतिराम' मनमोहन सों पुनि-पुनि, राधिका कहति बात साँची के पतीजिए; कब की हौं हेरति न हेरें हरि पावति हौं, बछरा हिरान्यो सो हिराय नैक दीजिए ॥३६३॥ १ उकति, २ लियो, ३ को, ४ जो, ५ जग।

  • देखो रसराज उदाहरण सुरतगुप्ता।

+देखो रसराज उदाहरण वचनविदग्धा ।