४२२ मतिराम-ग्रंथावली meinion Someromeoni SENIONARONSTRAGANILatvianence युक्ति-लक्षण मरम' छपावन कौं जहाँ, क्रिया आन संधान । तहाँ जुक्ति बरनन करत, कबि कोबिद सग्यान ॥३६४॥ उदाहरण लेन कौं फूल निकुंजन माँझ गयो मिलि गोपिन को गन भायो; नंदलला तिय के हिय मैं 'मतिराम' तहाँ दगबान खभायो। गेह चलीं सखियाँ सगरी चित सुंदर साँबरे-रूप लुभायो ; आँखिन पूरि कटीले कपोलनि कँटक कोमल पाय चुभायो॥३६५। __ लोकोक्ति तथा छेकोक्ति-लक्षण जहँ कहनावति अनुकरन, लोक उक्ति 'मतिराम' । और अर्थ लीन्हें सु जो, छेक उक्ति अभिराम ॥३६६॥ लोकोक्ति-उदाहरण मोहन को मुखचन्द लखें बढ़ि आनँद आँखिन ऊपर आवै; रोम उठे 'मतिराम' कहै तन चारु कदंब-लता छबि छाब। बूझति हौं हित के सखि तोहिं कहा रिस के यह भौंह चढ़ावै; मैं तृन सो गन्यो तीनहु लोकनि तू तृन ओट पहार छपावै।।३६७॥ छकोक्ति-उदाहरण छिति, नीर, कृसानु, समीर, अकास, ससी, रबि होत निरूप धरै; अरु जागत सोवत ह 'मतिराम' सू आपनी जोति प्रकास करै; जग ईस अनादि अनंत अपार वहै सब ठौरनि मैं बिहरै; सिगरे तनू मोह मैं मोहि रहे तन ओट पहार न देखि परै॥३६८।। १ सरम, २ रूप, ३ तिन, ४ नर, ५ तिन । - छं० नं० ३६५ खुभायो=गड़ा दिया। आँखिनि पूरि चुभायो- आँखों में अश्रु सात्त्विक और कपोलों पर रोमांच सात्त्विक हुआ था इसे छिपाने के लिए नायिका ने पैर में काँटा चुभा लिया। छं० नं० ३६७ भावार्थ-मैं तीनों लोकों को तिनके के समान समझती हूँ और तू पहाड़ को तिनके की ओट छिपाना चाहती है अर्थात् मुझसे संसार का कोई भेद छिपा नहीं है और उसीसे तू अपना प्रेम छिपाती है ।
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