पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४२७

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- ललितललाम ४२३ वक्रोक्ति-लक्षण श्लेष, काकु सों अर्थ की, रचना और जु होय । बक्र उक्ति सों जानिए, ग्यान सलिल मति धोय ॥३६९॥ ___ श्लेष-उदाहरण मेरे मन तुम बसत हौ, मैं न कियौ अपराध । तुम्हें दोष को देत हरि, है यह काम असाध ॥३७०॥ काकु-उदाहरण आज कहाँ तजि बैठी हौ भूषन ऐस ही अंग कछु अरसीले ; बोलत बोल रुखाई लिये 'मतिराम' सनेह सने हौ सुसीले । क्यौं न कहै दुख प्रानपिया अँसुवानि रहे भरि नैन लजीले ; कौन तिन्हैं दुख है जिनकै तुम-मे मनभावन छैल छबीले ॥ ३७१।।* जाति-लक्षण जाको जैसो होय सो बरनत जहा सुभाव । तहाँ जाति यह नाम कहि बरनत सब कबिराव ॥३७२।। उदाहरण जानत जहान ऐंड करि सुलताननि सौं, कीनौ कछवाह कामधुज को बचाव है; देत 'मतिराम' भाट चारन कबिन जौन, कौन पै गनायो जात गज समुदाव है। तेग त्याग सालिम सपूत सत्रसाल की, ____खीझें रन रुद्र रीझें माज दरियाव हैं ; साहनि सौं अकसिबो हाथिन को बिकसिबो, राव भावसिंहजू को सहज सुभाव है ॥३७३॥ छं० नं० ३७३ अकसिबो=झगड़ा करना ।

  • देखो रसराज उदाहरण मध्याघीराधीरा