पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४२८

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ARRIOR ४२४ मतिराम-ग्रंथावली SAKASEAS भाविक-लक्षण जहाँ भयो भावी अरथ, बरनत हैं परतच्छ । तहँ भाविक सब कहत हैं, जिनकी मति है अच्छ ॥३७४॥ .. उदाहरण निसि दिन स्रौननि पियूष सो पियत रहैं, छाय रह्यो नाद बाँसरी के सूरग्राम को ; तरनि-तनूजा-तीर बन कुंज बीथिन मैं, जहाँ तहाँ देखति हैं रूप छबिधाम को ; कबि 'मतिराम' होत हाँतो न हिए ते नैक,.... । सुख प्रेम गात को परस अभिराम को; ऊधो तुम कहत बियोग तजि जोग करौ, जोग तब करें जो बियोग होय स्याम को ॥३७५।। जनि चलाइए चलन की चरचा स्याम सुजान । मैं देखति हौं वाहि यह बात सुनत बिन प्रान ॥३७६॥ द्विविध उदात्त-लक्षण संपति को अधिकार जो, अरु उपलक्षण और। सो उदात्त द्वै भाँति को, बरनत कबि सिरमौर ॥३७७॥ . उदाहरण पुहुमि को पुरहूत सत्रुसाल को सपूत, संगर फतहैं सदा जासौं अनुरागती'; दान देत रीझ मैं दिवान भावसिंहजू कौं, धनद के धाम की तनक निधि लागती। १ संसार की सिरी सदा जासों अनुरागती। छं० ३७४ परतच्छ=प्रत्यक्ष । छं० नं० ३७५ नाद=शब्द । तरनि-तनूजा=यमुना।