पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२६ मतिराम-ग्रंथावली PASSS R iewsSANSAMAY meaninoccastottamchandracacturasasantumur PRATAPGTOANTERATA Site B ISHNOIDhwini ANAAOMINDIATIO ewala SamacmommmmmRED N AIRAMAASAIRANI उदाहरण-सवैया ललित बिलास कोटि मंद मृदुहास अति, अंग की सुबास' मृगमद-बास मंद की ; मदन के मद उनमद नैन मंदिर मैं', गति गरबीली कद मोकल गयंद की। जोबन की जोति जगमग होत ‘मतिराम', लोचन चकोरनि की संपति अनंद की ; अधिक अँध्यारी मैं उज्यारी होत ज्यौं-ज्यौं कछु, चंदकी उजारी मैं उजारी मुख चंद की ॥३८२॥ बाल-बिलोचन बारि के बारिधि बढे अपार । जारै जो न बियोग की बड़वा नल की झार ॥३८३॥ निरुक्ति-लक्षण जहाँ जोग ते नाम की अर्थ कल्पना और । बरनत तहाँ निरुक्ति हैं कवि कोबिद सिर मौर ॥३८४॥ उदाहरण मोहनि मंत्रनि मनमोहन कियौ तें बस, बारन ज्यौं बाँधि राखै तामरस ताग सौं; कबि 'मतिराम' आली अलि सों गुबिंद कीन्हौं, मंडित चरन-अरबिंद के पराग सौं। ऐसो पति पायो बड़े भागिन सौं प्यारी सदा, ___ सुबरन ही कौं पघिलावत सुहाग सौं ; १ अभिराम, २ से, ३ होत चंद की त्यों, ४ प्यारी, ५ पायो । छं० नं० ३८५ तामरस ताग=कमल का तार । बारन=हाथी । सुबरन ही कौं सुहाग सौं=अपने सौभाग्य से सुंदर नायक को वश में कर रक्खा है । श्लेष से-जैसे सुहागे से सोना पिघला दिया जाता है।