परंतु मान-मृदुता का दृश्य तो उस नवेली को लीला में है, जो—
"बाल सखिन की सीख ते मान न जानति ठानि;
बिन पिय-आगम भौन में बैठी भौंहैं तानि।"
नहीं जानते, प्रियतम के घर में आने पर यह भौंहों की तनेनी बनी रह सकेगी या नहीं। मान का यह निर्बोध, सरल और कलह-शून्य दृश्य है। एक और ऐसा ही मनोहर दृश्य है, पर उसमें कुछ हृदय पर चोट पहुंचानेवाला मसाला है। देखिए—
"बाल नबेली न रूसिबो जानति, भीतर मौन मसूसनि रोवै।"
पर इससे भी मृदुलतर दृश्य तो तब देखने को मिलता है, जब नायिका मान करने के अवसर की खोज में रहती है, अपने नायक में दोष ढूंढ़ती है। पर उसे हताश होना पड़ता है। उसका प्रियतम निर्दोष पाया जाता है। मान की साध अपूर्ण रहती है।
मतिराम की जानकारी
कवियों का ज्ञान बहुत ही विस्तृत होता है। वे संसार की सभी बातों पर ध्यान रखते हैं, और समय पड़ने पर अपनी इस प्रकार की जानकारी से पूरा लाभ उठाते हैं। हिंदी-भाषा के कवियों का ज्ञान परिमित नहीं कहा जा सकता। महात्मा तुलसीदास से मानव- प्रकृति की कौन-सी बातें छिपी थीं? महात्मा सूरदास का ज्ञान कितना गहरा और बहुव्यापी था! श्रृंगारी कवियों में कविवर देव और बिहारीलाल की जानकारी कम न थी। यह दूसरी बात है कि उन्होंने अपनी यह समग्र जानकारी विशेषतया नायक-नायिकाओं के वर्णन-संबंध में प्रकाशित की हो। देव और बिहारी श्रृंगारी कवि थे। "उनकी कविता श्रृंगारी है। सो उनके विस्तृत ज्ञान का दर्शन भी हमें उनकी ऐसी ही कविता में होता है। कविवर मतिरामजी भी श्रृंगारी कवि थे। उनका ज्ञान भी खब विस्तृत था; पर इस ज्ञान