पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१०८

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जाता। .. ostic ( ५७ ) भोजन में शुद्धि और सफाई का बहुत खयाल रखा जाता घा। इत्सिंग ने इस संबंध में बहुत कुछ लिखा है। हुएन्संग ने लिखा है कि-"भारतीय स्वयं ही पवित्र रहते हैं, भोजन किसी दबाव के कारण नहीं। भोजन के पूर्व वे स्नान करते हैं। उच्छिष्ट भाजन पीछे किसी को नहीं खिलाया भोजन के पात्र एक के बाद दूसरे को नहीं दिए जाते ! मिट्टी और लकड़ी के पात्र एक बार के प्रयोग के बाद प्रयुक्त नहीं होते। सोने, चाँदो, ताँवे आदि के पात्र शुद्ध किए जाते हैं।" यह शुद्धि आज भी पर्याप्त रूप से ब्राह्मणों आदि में विद्यमान है. यद्यपि अब इस पर कुछ कम ध्यान दिया जाने लगा भारतीयों का भोजन साधारणतया गेहूँ, चावल, ज्वार, वाजग. दूध, घी, गुड़ और शक्कर था । अल इदरिली अनहिनवाई के प्रसंग में लिखता है-'वहाँ के लोग चावल, मटर, फलियां, उन, मसूर, मछली और अन्य पशुओं को, जो खयं मर गए हो, याने , क्योंकि वे कभी पशु-पक्षियों को मारते नहीं। महात्मा तुम से पूर्व मांस का भी प्रचार वहुत था। जैन और बाद धर्म के कारण शनैः शनैः यह कम होता गया; हिंदू धर्म के पुनरभ्युदय कं समय जब बहुत से बौद्ध हिंदू हुए. तो अहिंसा और शाकाहार का धर्म भी साथ लाए। हिंदू धर्म में मांसाहार पाप समझा जाने लगा। मांस के प्रति बहुत विरक्ति हो गई थी। मसऊदी लिखता है कि ब्रामण किसी पशु का मांस नहीं खाते । स्मृतियों में भी नामों के मांस न खाने का विधान होने पर भी कुछ पिठलो स्मृतियों में श्राद्ध के समय मांस खाने की प्राज्ञा दी गई है। इस पर व्याल- स्मृति में तो यहाँ तक कह दिया गया है कि श्राद्ध में मांस न वानवाला

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