पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/११६

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. . . (६५ ) में पानेवाले देशी शब्दों का एक कोश भी बनाया, जिलमें प्रत्येक शब्द के प्रयोग के स्वरचित उदाहरण दिए थे। हेमचंद्र ने अपनी देशी नाममाला में दो जगह उसके मतभेद का उल्लेख फर उदाहरण में उसकी कविता उद्धृत की है। स्त्री-शिक्षा के त्रिपच में राजशेखर अपने विचार इस तरह प्रकट करता है-"पुरुषों की तरह स्त्रियाँ भी कवि हों। संस्कार तो आत्मा में होता है, वह बी या पुरुष के भेद की अपेक्षा नहीं करता। राजायों और मंत्रियों की पुत्रियों, वेश्याएँ, कौतुकियों की स्त्रियाँ, शास्त्रों में निष्णात बुद्धिवाली और कवचित्री देखी जाती हैं। हमारे समय में बहुत सी त्रियाँ भी संस्कृत की कवि हुई हैं, जिनमें से कुछ के नाम में है-दुलंन्या, मारूला, मोरिका, विज्जिका, शीला, मुभद्रा, पद्यश्री. मदानमा और लक्ष्मी । इतना ही नहीं, स्त्रियों को गणित की गिजा भी दी जाने के उदाहरण मिले हैं। भास्कराचार्य ( बारहवीं सदी के अंत में ) ने अपनी पुत्री लीलावती को गणित का अध्ययन करने के लिये 'लीलावती' ग्रंथ लिखा। स्त्रियों को ललित फलामों की तो विशेष शिक्षा दी जाती थी। राज्यश्री को नंगीत, नृत्य प्रादि सिखाने का विशेष प्रबंध किए जाने का उल्लेख वाण ने किया है। हर्प की रत्नावली में रानी का वर्तिका (मश ) संगीन चित्र दनानं का वर्णन है।। उसी में रानी को गीत, नृत्य, वाद्यादि के विषय में सलाह देनेवाली बताया है। खोज करने से इतिहास में एम बहुत से उदाहरण मिल सकते हैं। स समय पर्दा प्रचलित ना। राजाओं की लियो दरवारों में प्राती थीं। हुएन्संग लिखता है कि जिस समय हर मिहिर- नागरी-प्रचारिणी पनिया ( नदीन संत्वरण ) भाग : ...! लावली; चंदः ।