८१ ) - है नाटक संस्कृत साहित्य में चंपू ग्रंथों (गद्य-पद्यात्मक काव्यों) का भी विशेष स्थान है। सबसे प्रसिद्ध चंय 'नल चंपू है जिसं त्रिविक्रम मा ने १५ ई. के बाल पास बनाया था। साम- चंपू देव का 'यशस्तिन्तक' भी उत्कृष्ट चं राजा भोज ने 'चंपरामायण' की रचना की पर उन कंवल पांच कांड ही लिखे जा सके। नाटकों का प्रचार भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल में या और पाणिनि से, जो ई० सन् पूर्व की छठी शताब्दी में हुआ, पूर्व ही उन नियम-ग्रंथ भी बन चुकं । शिलाली श्रीर वृशाच कं नट-त्रों का नाम भी दिया है पीछे से भरत ने 'नाट्यशासी लिया। से पूर्व भास, कालिदास अश्वधापादि प्रसिद्ध नाटकल ना. हमारे समय में भी बहुत से नाटक बने । महाराजा शुद्रक का बनाया गया 'मृच्छयाटिग मी कोटि का नाटक है । इसमें जीवन-शक्ति और करीनामा अच्छी तरह दिखाए गए हैं फराज फं प्रमिला ने 'रत्नावलो' और 'प्रियदर्शिका' नाम के नाटय लिन पात्रों का चरित्र-चित्रण तथा वस्तु का विधान बनना किया गया है। उसका तीसरा नाटक 'नागानंद है. जिनका मैक्डानल श्रादि विद्वानों ने बहुत प्रना की है । Files For: महाकवि कालिदास की प्रतिस्पर्धा करनेवाला भवभूति भी हानि काल ( पाठवीं शताब्दी ) में हमा। भवनि कार का रहने उस तीन नाटक-मालतीमादना. चरित' और 'उत्तररामचरित-मित है. : इन तीनों नाका अपनी अपनी विशेषता है। मालतीमाधम में महा. चरित में वीर रस और उत्तररामचरित मानमः म.-११ एकजाहाणा घा। ..
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