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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१५७

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, (१०६) अरवी में अनुवाद किया । खलीफा हा रशीद और अलमामू ने भारतीय ज्योतिपियों को अरब में बुलाकर उनके ग्रंथों का अरबी में अनु- वाद कराया। हिंदू भी ग्रोकों की तरह अरबों के गुरु थे। आर्यभट के ग्रंथों का अनुवाद कर 'अर्जवहर' नाम रखा गया। चीन में भी भारतीय ज्योतिष का बहुत प्रचार हुआ। प्रोफेसर विल्सन ने लिखा है-'भारत में मिलनेवाली, क्रांतिवृत्त का विभाग, सौर और चांद्रमासों का निरूपण, ग्रहगति का निर्णय, अयनांश का विचार, सौरराशिमंडल, पृथ्वी की निराधार अपनी शक्ति से स्थिति, पृथ्वी की अपने अक्ष पर दैनिक गति, चंद्र का भ्रमण और पृथ्वी से उसका अंतर, ग्रहों की कक्षा का मान तथा ग्रहण का गणित आदि ऐसी बातें हैं, जो अशिक्षित जातियों में नहीं पाई जाती' । भारत में अत्यंत प्राचीन काल से लोगों का फलित ज्योतिष पर विश्वास रहा है। ब्राहाणों और धर्मसूत्रों में भी इसका कहीं कहीं उल्लेख पाया जाता है। इसके प्राचीन ग्रंथ फलित ज्योतिप नहीं मिलते । बहुत संभव है कि वे नष्ट हो गए हों। वृद्धगर्ग-संहिता में भी इसका कुछ उल्लेख मिलता है। वराह- मिहिर के कथनानुसार ज्योतिप शास्त्र तंत्र, छोरा और शाखा तीन विभागों में विभक्त है। तंत्र या सिद्धांत ज्योतिप का वर्णन ऊपर किया जा चुका है। होरा और शाखा का संबंध फलित ज्योतिप से है। होरा में जन्म-कुंडली आदि से मनुष्य के जीवन संबंधी फला- फल का विचार रहता है। शाखा या संहिता में धूम्रकेतु, उल्का- पात, शकुन, और मुहूर्त आदि का विवेचन होता है। वराहमिहिर

  • हंटर; इंडियन गैजेटियर-इंडिया; पृ० २१८ ।

मिल; हिस्टी श्रॉफ इंडिया; जिल्द २, पृ० ५०७ । + येवर; इंडियन लिटरेचर; पृ० २५५ । $ मिल; हिस्ट्रो अफि इंडिया; जि० २, पृ० १०७ । 3