पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१६६

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( ११५ ) गणित में हिंदू लोग अंकों का उसी तरह प्रयोग करते हैं जैसे कि हम करते हैं। मैंने एक पुस्तक लिखकर यह बतलाया है कि इस विषय में हिंदू हमसे कितने आगे बढ़े हुए हैं।" गणित-विषयक जो पुस्तकें उपलब्ध होती हैं, वे प्राय: ज्योतिप के उन्हीं विद्वानों की हैं, जिनका हम ऊपर उल्लेख कर चुके हैं आर्यभट की पुस्तक के प्रथम दो भाग; 'ब्राह्म- अंकगणित स्फुटसिद्धांत' में गणिताध्याय और कुतुकाध्याय तथा 'सिद्धांतशिरोमणि' में लीलावती और वीजगणित नामक अध्याय गणित से संबंध रखते हैं। इन पुस्तकों को देखने से पता लगता है कि वे गणित के सभी उच्च सिद्धांतों से परिचित थे सरल गणित के आठों नियमो-योग, ऋण, गुणा, भाग, वर्गीकरण, घनीकरण, वर्गमूल और घनमूल-का उनमें पूर्ण वर्णन मिलता है। इसके बाद भिन्न संबंधी, शून्य संबंधी, क्षेत्रफल, कार्य-संबंधी, त्रैराशिक, अढी, कुट्टक तथा अनंत राशियों के मान-संबंधी अर्थात् शून्य गणित और व्याज संबंधी नियमों का भी वर्णन मिलता है। केवल अंक गणित ही नहीं, ज्योतिष के लिये वीजगणित का भी उपयोग वहुत किया जाता था। उपर्युक्त पुस्तकों में हम वीजगणित के बहुत उन्नत सिद्धांत देखते हैं। बीजगणित यहीं विकसित हुआ था। श्रीयुत काजोरी ने लिखा है कि 'बीजगणित के प्रथम यूनानी विद्वान् डायोफैट ने भी भारत से ही इस संबंध में पहले पहल ज्ञान प्राप्त किया .' बीजगणित यूनान से सीखा, यह ठीक नहीं है। भारतीय और यूनानी वीजगणित में बहुत से भेद हैं । भारत ने वारहवीं सदी तक वीज- गणित संबंधी जो नियम आविष्कृत किए थे, वे यूरोप में सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में प्रचलित हुए। भारतीयां ने वीजगणित में

  • अल्वेस्नीज इंडिया; जिल्द १, पृ. १७४-७७ ।

यह भी भारत ने