पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१६८

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' (११७ ) 1-पैथागोरस की सिद्धि अर्थात् समकोण त्रिभुज की दो भुजाओं का वर्गों का योग कर्ण के वर्ग के बराबर होता है। २—दो वर्गों के योग या अंतर के समान वर्ग बनाना । ३-किसी भी आयत को वर्ग में परिणत करना । का वास्तविक मान और राशियों का मध्यसाहरण । ५-- वर्गों को वृत्त में परिणत करना । ६-वृत्त का क्षेत्रफल । -विषम चतुर्भुज में करणानयन की विधि । ८-त्रिभुज. वृत्त और विषम चतुर्भुज का क्षेत्रफल । ६-ब्रह्मगुप्त ने वृत्तखंड की ज्या तथा उस पर से खिंचे हुए कोदंड तक के लंव के मालूम होने पर व्यास और वृत्तखंड का क्षेत्र- फल निकालने के नियम भी दिए हैं। १०-शंकु और वर्तुलाकार पदार्थों' का क्षेत्रफल । भास्कराचार्य ने अपने पूर्व के बहुत से गणित के विद्वानों-आर्य- भट, लल्ल, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, महावीर (८५० ई०), श्रीधर (८५३ ई०), आर्यभट (द्वितीय) और उत्पल (६७० ई०)-के स्थिर किए हुए नियमों का सार देकर उनकी कृति वतलाई है। बीजगणित की भाँति याकूब ने ही भारतीय रेखागणित का प्रचार अरव में किया । प्राचीन भारतीय त्रिकोणमिति से भी पूर्णतया परिचित थे । उन्होंने ज्या ( Sine ) और उत्क्रम ज्या (Versed sinc) की सारणियाँ बना ली थीं। इन सारणियों में वृत्तपाद के त्रिकोणमिति चौवीसवें भाग तक का प्रयोग है। दोनों सार- णियों में अभिन्न मान से ज्या और उत्क्रम ज्या का परिदर्शन मिलता इस त्रिकोणमिति का प्रयोग ज्योतिष के लिये होता था। है।

  • विनयकुमार सरकार; हिंदू एचीवमैंट्स इन एक्जेक्ट साईसंज, पृ.

६६.१६ ।