पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१६९

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(११८) वाचस्पति न चापीय घनक्षेत्र निकालने का साधन बिलकुल मौलिक रीति से दिया है। इसी तरह न्यूटन से पाँच शताब्दी पूर्व चलन गणित का याविष्कार कर भास्कराचार्य ने उसे ज्योतिष में प्रयुक्त किया था । श्रीयुत प्रजेन्द्रनाथ सील कं कथनानुसार भास्करा- चार्य राशियों के तात्कालिक गणित साधन में पार्किौडिस से अधिक शुद्ध और प्रवल हैं। भारकराचार्य ने ग्रह की क्षणिक गति की गणना करते हुए एक सेकंड के ३३७५ में भाग-त्रुटि-का भी उल्लेख किया है। भारतीय, भूगोल . और ग्रहमंडल-संबंधी गतिशास्त्र से भी परि- चित थे। स्थितिशास्त्र ( Stuties) और गतिशास्त्र ( Dynamics) से भी भारतीय कुछ न कुछ परिचित अवश्य थे। . प्रायुर्वेद आयुर्वेद भी बहुत प्राचीन काल से भारतवर्ष में अत्यंत उन्नत था । वैदिक साहित्य में हम शरीर-विद्या, गर्भविद्या और स्वच्छता का मूल देखते हैं। अथर्ववेद में रोगों के नाम और आयुर्वेद का साहित्य उनके लक्षण तक ही नहीं, किंतु मनुष्य के शरीर की हड्डियों तक की पूरी संख्या दी है। वौद्ध काल में वैश्क का बहुत विकास हुआ। अशोक के पार्वतीय लेखों के दूसरे प्रज्ञापन में पशु-चिकित्सा और मनुष्य-चिकित्सा एवं मनुष्यों और पशुओं के उपयोग की श्रौषधियों का उल्लेख है। चीनी तुर्किस्तान से ३५० ई० के आसपास के भाजपत्र पर लिखे संस्कृत ग्रंश मिले हैं, जिनमें से तीन आयुर्वेद संबंधी हैं। आयुर्वेद के प्राचीन विद्वानों में चरक का नाम बहुत प्रसिद्ध है। उसके समय और निवास स्थान के

  • विनयकुमार सरकार; हिंदू एचीवमेंट्स इन एक्जैक्ट साई सेज; पृ०

२०-२७ ।