पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१७०

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. (११६ ) विषय में ऐतिहासिकों में मतभेद है। उसकी 'चरकसंहिता' अग्निवेश के आधार पर लिखी गई है। 'चरकसंहिता' वैद्यक का अत्यंत उत्कृष्ट ग्रंथ है। 'सुश्रुत-संहिता' भो एक बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसका कम्बोडिया में नवीं तथा दसवीं शताब्दी में प्रचार हो चुका था। यह ग्रंथ पहले सूत्रों में लिखा गया था। ये दोनों ग्रंथ हमारे समय के पूर्व के हैं। हमारे निर्दिष्ट काल के प्रारंभ के दो आयुर्वेद के ग्रंथ 'अष्टांग- संग्रह' और 'अष्टांग-हृदय-संहिता' हैं। वृद्ध वागभट्ट ने 'अष्टांग- संग्रह' संभवतः सातवीं सदी के आस पास लिखा था। दूसरे ग्रंथ का कर्ता भी वागभट्ट ही है, जो पहले से भिन्न है और संभवतः ८०० ई० के आस पास हुआ था। इसी समय इंदुकर के पुत्र माधव- कर ने 'रुग्विनिश्चय' या 'माधवनिदान' नामक एक उत्कृष्ट ग्रंथ लिखा। यह ग्रंथ आज भी निदान के संबंध में बहुत प्रामाणिक समझा जाता है। इसमें रोगों के निदान आदि पर बहुत विस्तार से विचार किया गया है। वृंद के 'सिद्धियोग' में ज्वर आदि के समय विषों के परिणाम आदि पर अच्छा विचार किया गया है। १०६० ई० में बंगाल के चक्रपाणि दत्त ने 'सुश्रुत' और 'चरक' की टीका लिखने के अतिरिक्त 'सिद्धियोग' के आधार पर चिकित्सा- सार-संग्रह' नामक ग्रंथ लिखा। हमारे समय के अंत में १२०० ई० के करीब शाङ्गधर ने 'शाङ्गधर संहिता' लिखी। उसमें अफीम और पार आदि औषधियों के वर्णन के अतिरिक्त नाड़ी-विज्ञान के भी नियम दिए हैं। पारे का उस समय वहुत प्रचार था। अलबरूनी ने भी पारे का वर्णन किया है। वनस्पति शास्त्र के संबंध में कई कोश भो जिनमें 'शब्दप्रदीप' और 'निघंटु' प्रसिद्ध हैं। हमारे यहाँ शरीर-विद्या (Anatomy) वहुत उन्नत थी। उस समय के ग्रंथों में हड्डियों, नाड़ियों और सूक्ष्म शिराओं आदि का पूर्ण विवेचन मिलता है। लिखे गए,