पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१८५

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(१३२) किसानों के पारस्परिक विवाद, वेतन, दात, कठोर वचन कहने, कठोर दंड देने, चोरी, व्यभिचार तथा अन्य प्रकार के अपराध करने पर दंड और सह कारी संघों के नियम तथा कर आदि का अच्छी तरह से विवेचन किया गया है। प्रायश्चित्ताध्याय में सामाजिक नियमों पर विचार किया गया है। इस उत्तम ग्रंथ की टीका विज्ञानेश्वर (ग्यारहवीं सदी) ने 'मिताक्षरा' नाम से की। मिताक्षरा को उसकी टीका कहने की अपेक्षा उसके आधार पर एक स्वतंत्र ग्रंथ कहना अधिक अच्छा होगा। विज्ञानेश्वर ने प्रत्यक बात पर बहुत विचार किया है। स्थल स्थल पर उसने हारीत, शंख, देवल, विष्णु, वसिष्ठ, यम, व्यास, वृहस्पति, पराशर आदि अनेक स्मृतिकारों के भी प्रमाण उद्धृत किए । इनमें से कुछ स्मृतियाँ हमारे समय में बनीं। लक्ष्मीधर ने वारहवीं शताब्दी में 'स्मृतिकल्पतरु' नामक एक ग्रंथ लिखा। ये स्मृतियाँ धर्मस्मृतियों का भी काम देती थीं। पिछली स्मृतियों में छूत-छात आदि को प्राधान्य दिया जाने लगा था। . - अर्थशास्त्र वार्ता ( Pconomics ) की भी, जिसे आजकल अर्थशास्त्र कहते हैं, पहले कम उन्नति नहीं हुई थी। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इसके लिये वार्ता नाम मिलता है। युरोप के वर्तमान अर्थशास्त्र में उत्पत्ति (Productio..), fafa (Exchangu), featu (Distribution), और व्यय ( Consumption ) मुख्य विषय है, परंतु पहले केवल उत्पत्ति ही मुख्यतः अर्थशास्त्र समझा जाता था। वार्ता में भी उत्पत्ति को मुख्यता दी जाती थी। कृपि, शिल्प, और वार्ता के मुख्य अंग थे। व्यापार और कुसीद (Money lending) की भी उपेक्षा नहीं की जाती थी। वार्ता शास्त्र के नाम से हमें कोई व्यवसाय पशुपालन प्राचीन