सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १५४ ) समितियाँ थी। एक सगय एक तालाब में पानी अधिक पाने के कारण ग्राम को हानि पहुँचने की संभावना होने पर पास-सभा ने तालाव-समिति को उसका सुधार करने के लियं विना सूद रुपया दिया और कहा कि इसका सूद मंदिर-समिति को दिया जाय : यदि कोई किसान कुछ वर्ष तक कर न देता था, तो उससे भूगि छीन ली जाती थी। ऐसी जमीन फिर नीलाम कर दी जाती थी : भूमि वेचने या खरीदने पर ग्राग-सभा उसका पूरा विवरण तथा दस्तावेज अपने पास रखती थी। सारा हिसाब-किताय ताडपत्रादि पर लिखा जाता था। सिंचाई की तरफ विशेष ध्यान दिया जाता था! जल का कोई भी स्रोत व्यर्थ नहीं जाने पाता था. नहरी, तालाबों और कुओं की मरम्मत समय समय पर होती थी। आय-व्यय के रजिस्टरों का निरीक्षण करने के लिये राज्य की ओर से अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। चोल राजा परांतक के समय के शिलालेख से ग्राम संस्थानों की निर्माण-पद्धति पर बहुत प्रकाश पड़ता है। उसमें ग्राम-सभा के सभ्यों की योग्यता अयोग्यता संबंधी नियम, सभाओं के अधिवेशन के नियम, सभ्यों के सार्वजनिक चुनाव के नियम, उपसमितियों का निर्माण, आय-व्यय के परीक्षकों की नियुक्ति प्रादि पर विचार किया गया है। चुनाव सार्वजनिक होता था, इसकी विधि यह होती थी कि लोग ठीकरियों पर उम्मीदवार का नाम लिखकर घड़े में डाल- देते थे, सबके सामने वह घड़ा खोलकर उम्मीदवारों के मत गिने जाते थे और अधिक मत से कोई उम्मीदवार चुना जाता था।

  • विनयकुमार सरकार; दी पोलिटिकल इंस्टिट्य शंस एंड थ्य रीज श्राफ

दी हिंदूज; पृ० ५३-५६ । । आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया; एन्युअल रिपोर्ट १६०४-५; पृ० १४२-४५