पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२२०

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कैस्पियन सागर , ब्रिटैनिका में लिखा है कि यूरोप के साथ भारत का व्यापार निन्न- लिखित मार्गों से होता था- १-भारत से पलमायरा नामक शहर द्वारा राम होता हुआ सीरिया की तरफ। २-हिमालय को पार कर आक्सस होते और वहाँ से मध्य यूरोप* । भारतवर्ष से अधिकतर रेशम, छींट, मलमल आदि भिन्न भित्र प्रकार के वस्त्र और मणि, मोती, हीरे, मसाले, मोरपंख, हार्थीदाँत आदि बहुत अधिक विदेशों में जाते थे। भारतीय व्यापार मिश्र की आधुनिक खोज में वहाँ की ममियों की कुछ पुरानी कबरों से बारीक भारतीय मलमन्त भी मिली है विदेशी व्यापार के कारण भारतवर्ष बहुत अधिक समृद्ध हो गया । प्लिनी ने लिखा है कि प्रति वर्ष रोमन साम्राज्य सं दन लान्य पीट ( एक करोड़ रुपए ) भारत में आते थे औः कंबल रोम में चालीस लाख रुपए भारत में खिंचे चले जाते छ। देश के प्रांतरिक व्यापार में भिन्न भिन्न तीयों का भी बाहुन महत्त्व था इनके मेलों में सब प्रकार के व्यापारी और ग्राहक आते थे और बड़ी भारी खरीद फरोख्न होता मेले प्राज भी हरिद्वार. काशी श्रार पुष्कर आदि तीर्थो में होनेवाले मेले व्यापारिक दृष्टि से कम महत्त्व के नहीं हैं. आजकल भारतवर्ष केवल कृषिप्रधान देश रह गया है, परंतु पहले यह बात न थी। भारतवर्ष में व्यवसाय प्रार यांन-बंध भी वहुत अच्छी अवस्था में थे। सबसे उत्तम व्यवसाय दलों का थी।

एसाइलोपीडिया ब्रिटैनिकाः जि० ६१, पृ. ४५६ ।

+ प्लिनी; नैचरल हिल्टी।

  • एसाइलोपीटिया टैिनिका; जि० ५१, पृ० ४६८ ।