पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२२२

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. ( १६६) धार का जयस्तंभ भी दर्शनीय वरतु है । यह मुसलमानों के समय में तोड़ा गया था। इसका एक खंड २२ फुट और दूसरा १३ फुट का है। इसका एक छोटा सा तीसरा खंड भी मांडू से मिला है। राजा लोग जयस्तंभ बनवाया करते थे। लोहे के व्यवसाय पर लिखते हुए मिसेज मेंनिंग ने लिखा है कि आज भी ग्लासगो और शैफोल्ड में कच्छ से अधिक अच्छा फौलाद नहीं बनताः । लोहे के अतिरिक्त अन्य धातुओं का काम भी बहुत अच्छा था । सोने चाँदी के तरह तरह के पात्र और जेवर बनते थे। पात्रों के लिये अधिकतर ताँबा प्रयुक्त होता था। भाँति भाँति के रत्न काटकर सोने में मढ़े जाते थे। कुछ सुवर्णपत्रों पर ऐसी बौद्ध जातकें अंकित हुई हैं, जिनमें कई पत्र अादि पन्नं मागिक वगैर रत्नों के बने हुए हैं, और पञ्चकारी के ढंग से लगे हुए हैं। रनों तथा कीमती स्फटिकों की बनी हुई मूर्तियां भी देखने में ज्याई और ऐसी एक स्फटिक मूर्ति तो अनुमान एक फुट ऊँची पाई गई है। पिप- रावा के स्तूप में से स्फटिक का बना हुआ छोटे मुँहवाला य नाकार सुंदर वर्तन मिला है जिसके ढक्कन पर स्फटिक की सुंदर महला यनी हुई है । सुवर्ण की बनी हुई कई मूर्तियाँ अव तक विद्यमान हैं। पीनन्द या सर्वधातु की तरह तरह की विशाल मूर्तियों अब तक कई मंदिरों में स्थापित हैं। इससे यह भी अनुमान होता है कि भारत में पानी से धातु निकालने तथा उन्हें साफ करने की विधि प्रचलित थी । धातुओं के अतिरिक्त काच का भी काम बहुत उनम होता था , प्लिनी ने भारतीय काच को सबसे उत्तम बताया है। विनियां तथा दरवाजों में भी काच लगते थे और दर्पट काच श्रादि का व्यवसाय भी बनाए जातं धं। हार्यादाँत ब्रार भी चूड़ियाँ अादि उत्तम पदार्थ बनते पं. उन पर तरह तरह की कार्ग-

  • एंश्यंट एंड मी हे एवल इंडिया, जि.२, १.६६५ ।

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