पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२२६

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भारतवर्ष कृपि, व्यापार, . १७३ ) व्यवसाय और अमूल्य खानों के कारक बहुत समृद्ध था। उस समय खाने पीने की चिंता अधिक नहीं थी। नागरिक जीवन से भी, जिसका वर्णन हम पहले भारत की प्रार्थिक स्थिति कर चुके हैं, मालूम होता है कि प्राचीन भार- तीय संपन्न और समृद्ध थे। व्यापार में निर्यात के बहुत अधिक होने के कारण भारत की संपत्ति दिन दिन बढ़ती जाती थी। भारत- वर्ष में हीरे, नीलम, मोती और पन्नों की भी कमी नहीं थी। प्रसिद्ध कोहनूर हीरा भी भारत में उस समय विद्यमान था। प्लिनी ने भारतवर्ष को हीरे, मोती आदि कीमती पत्थरों की जननी और मगियों का उत्पादक कहा है। वस्तुतः भारतवर्ष हीरे, लाल, मोती, मुंगे और भाँति भाँति के अन्य रत्नों के लिये प्रलिक था। सोना भी यहाँ बहुत मात्रा में था। लोहा, ताँबा और सीता भी बहुतायत निकलता था। अधिकांश चाँदी बाहर से आती थी, इसनियं महंगी रहती थी । प्रारंभ में सोने का मूल्य चाँदी से अठगुना गा. जामा निर्दिष्ट काल के अंत में बढ़ता हुआ सोलह गुना तक पहुँच गया । यह समृद्धि हमारे समय के अंतिम काल तक विमान थी। सोमनाथ के मंदिर में सोने और चांदी की अनेक बनटिन मृर्निया पास ही २०० मन सोने का सांकल था. जिसकं नायचं वधे होते थे। महमूद गजनवी उसी मंदिर से एक करोड़ रूपयों में अधिक मूल्य की संपत्ति लूट में ले गया था। इसी तरह वह मयुगा और कन्नौज प्रभृति स्थानों से भी अनंत धन-राशि ले गया । यदि भारत की तत्कालीन संपत्ति की जानकारी करनी हो तो नर प्रार दक्षिण भारत के उस समय के पने हुए संकड़ों भव्य मंदिगं को देखना चाहिए, जिनके कलश, मूर्तियाँ चा न्तंभ नानं बॉदी अथवा रत्नों से जटित घं। थीं।