पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/२५१

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( १८४ ) में चार मील दूर रियत पर्वत श्रेणी में खुदी हुई हैं। इनमें २४ विहार ( मठ ) और ५ चैत्य ( स्तूपवाल विशाल भवन ) बने हैं, जिनमें से तेरह में दीवारों, भीतरी छतों, या तंभों पर नित्र अंकित किए गए है। चिन-लेखन से पूर्व चट्टान की भित्ति पर एक प्रकार का प्ला- स्टर लगाकर चूने जैसे किसी पदार्थ की घुटाई की गई है, 'प्रार. उस पर चित्र अंकित किए गए हैं। ये सब गुफाएँ एक समय की कटी हुई नहीं, किंतु अनुमानतः ईसवी सन की चानी शताब्दी से लगाकर सातवीं शताब्दी के प्रासपास तक समय समय पर बनी हैं। इनके अंतर्गत भिन्न भिन्न चित्रों के विषय में भी यही समय समझना चाहिए। कई एक चित्र हमारे व्याख्यान के पूर्ववर्ती काल के दाने से उस समय की भारतीय चित्रकला का परिचय देते हैं। अधिकतर चित्र हमारे निर्दिष्ट काल या उससे कुछ ही पूर्ववर्ती समय के हैं। इन चित्रों से उक्त काल की हमारी चित्रकला का परिचय मिलता है। उनमें गौतम बुद्ध की जीवन-घटनाएँ, मातृपोपफ जातक, विश्वांतर जातक, पड्दांत जातक, रुरु जातक और महाहंस जातक आदि १२ जातकों में वर्णित गौतम बुद्ध की पूर्व जन्म की कथाएँ, धार्मिक इतिहास तथा युद्ध के दृश्य और राजकीय तथा लौकिक चित्र अंकित हैं। ऐसे ही बगीचों, जंगलों, रथों, राज-दरवारों, घोड़े, हाथी, हरिण अादि पशुओं, हंस आदि पक्षियों तथा कमल आदि पुष्पों के अनेक चित्रण बने हुए हैं। इन सबको देखने से दर्शक की आँखों के सामने एक ऐसे नाटक का सा दृश्य उपस्थित हो जाता है, जिसमें जंगलों, शहरों, वगीचों और राजमहलों आदि वीर तपस्वी, प्रत्येक स्थिति के ली पुरुप और स्वर्गीय दूत, गंधर्व, अप्सरा और किन्नर आदि पात्र रूप से हैं। ऐसे सैकड़ों चित्रों में से एक चित्र का परिचय इस अभिप्राय से दिया जाता है कि उनमें से कुछ चित्रों का काल-निर्णय करने में . . 1 स्थानों में राजा, पुरुप, -