रखा। ( ४४ ) दो बड़े भेद हो गए। भिन्न भिन्न रीति रिवाजों और विचारों के कारण कई भेद पैदा हो गए। दार्शनिक विचारों में मत-भेद हो जाने के कारण भी भेद बढ़े। इन्हीं कारणों से जाति-भेद पढ़ते बढ़ते आज सैकड़ों जातियां हो गई। हमारे समय तक ब्राह्मण पंचगौड़ और पंचद्रविड़ दो मुख्य शाखाओं में नहीं बँटे थे। यह भेद १२०० के वाद हुआ, जो संभवतः मांसाहार और अन्नाहार के कारण हुआ हो । ग्यारहवीं सदी में गुजरात के सोलंकी राजा मूलराज ने सिद्धपुर में रुद्रमहालय नामक विशाल शिवालय बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा के समय कन्नौज, कुरुक्षेत्र आदि उत्तरीय प्रदेशों से एक हजार ब्राह्मणों को बुलाया और गाँव आदि देकर उन्हें वहीं उत्तर से आने के कारण वे 'औदीच्य' कहलाए और गुजरात में बसने के कारण पीछे से उनकी संज्ञा भी द्रविड़ों में हो गई; जिनकी गणना वास्तव में गाड़ों में होनी चाहिए थी । अब हम क्षत्रियों के संबंध में कुछ विवेचन करते हैं। ब्राह्मणों की तरह क्षत्रियों का भी समाज में बहुत ऊँचा स्थान था। इनके मुख्य कर्तव्य प्रजा-पालन, दान, यज्ञ, अध्ययन आदि क्षत्रिय और उनके राज्य के शासक, सेनापति और योद्धा प्रायः ये ही होते थे। ब्राह्मणों के साथ अधिक रहने से क्षत्रिय लोगों-विशेषतः राजकीय वर्ग में शिक्षा का प्रचार बहुत अच्छा था ) वहुत से राजा बड़े बड़े विद्वान् हुए हैं। हर्षवर्धन साहित्य का अच्छा विद्वान था। पूर्वीय चालुक्य राजा विनयादित्य गणित का बड़ा पंडित था, जिससे उसे गुणक कहते थे। राजा भोज की विद्वत्ता लोकप्रसिद्ध है। थे। कर्तव्य
- चि० वि० वैद्य; हिस्ट्री श्रॉफ मिडिएवल इंडिया; जिल्द ३, पृष्ठ
3 + मेरा राजपूताने का इतिहास; जिल्द १, पृष्ठ २१५ ।