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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/९०

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किए। बँट गए। ( ४५ ) उसने वास्तुविद्या, व्याकरण, अलंकार, योगशास्त्र और ज्योतिष आदि विषयों पर कई उपयोगी और विद्वत्तापूर्ण ग्रंथ लिखे । चौहान विग्रह- राज ( चतुर्थ ) का लिखा हुआ 'हरकलिनाटक' आज शिलानों पर खुदा हुआ उपलब्ध है। इसी तरह कई अन्य राजाओं के भी ग्रंथ मिलते हैं। वर्ण-व्यवस्था के विशुद्ध रूप में कायम न रहने तथा वहुत से क्षत्रियों के पास भूमि न रहने के कारण वे वकार हो गए और उन्होंने भी ब्राह्मणों की तरह अन्य पेशे इख्तियार करने शुरू इसका एक परिणाम यह हुआ कि क्षत्रिय दो श्रेणियों में एक तो वे क्षत्रिय जो अव भी अपने कार्य करते च और दूसरे वे जिन्होंने कृषि आदि दूसरे पेशे शुरू कर दिए थे। इन्न खुरदाद में जो सात श्रेणियाँ बताई हैं, उनमें से सबकुट्रिय और कटरिय संभवतः येही दोनों श्रेणियाँ हैं। क्षत्रिय लोग भी शुरू में बहुधा मद्य नहीं पीते थे। अल- मसऊदी लिखता है कि यदि कोई राजा शराब पी ले, तो वह शासन करने के योग्य नहीं समझा जाता। हुएन्त्संग के समय तक क्षत्रिय भी ब्राह्मणों की तरह जीवन में बहुत उन्नत थे। वह लिखता है-'ब्राह्मण और क्षत्रिय बहुत शुद्ध, वाह्याडंबरों से दूर, जीवन में सरल और पवित्र तथा मितव्ययी होते हैं।' प्रारंभ में क्षत्रिय भी अधिक वंशों में बटे हुए नहीं थं महा- भारत और रामायण में सूर्य और चंद्र वंशियों का वर्णन अाता है और यह वंश-भेद समय के साथ साथ बढ़ता गया। राजतरंगिणी ने भारत " चि० वि० वैय; हिल्ट्री श्राफ मिटिएवल इंडिया; जिल्द २, पृष्ट ६७६-८०। इलियट; हिस्ट्री धाफ इंडिया; जिल्द १, पृ० २०