सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १०४ ) २१३-जिस संज्ञा से ( यथार्थ वा कल्पित ) स्त्रीत्व का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं; जैसे, लड़की, गाय, लता, पुरी। इन उदाहरणों में “लड़की" और "गाय” से यथार्थ स्त्रीत्व का और "लता" तथा "पुरी" से कल्पित स्त्रीत्व का बोध होता है इसलिए ये शब्द स्त्रीलिंग हैं । लिंग-निर्णय २१४-हिंदी में लिंग-निर्णय दो प्रकार से किया जा सकता है-(१) शब्द के अर्थ से और (२ ) उसके रूप से। बहुधा प्राणिवाचक शब्दों का लिंग अर्थ के अनुसार और कई एक अप्राणि-वाचक शब्दों का लिंग रूप के अनु- सार निश्चित करते हैं। शेष शब्दों का लिंग केवल व्यवहार के अनुसार माना जाता है। २१५-जिन प्राणिवाचक संज्ञाओं से जोड़े का ज्ञान होता है, उनमें पुरुषबोधक संज्ञाएँ पुल्लिंग और स्त्रीबोधक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं; जैसे, पुरुष, घोड़ा, मोर पुल्लिंग हैं; और स्त्री, घोड़ी, मोरनी स्त्रीलिंग हैं। अपवाद:- "संतान" और "सवारी" ( यात्री) स्त्रीलिंग हैं। २१६-कई एक मनुष्येतर प्राणिवाचक संज्ञाओं से दोनों जातियों का बोध होता है; पर वे व्यवहार के अनुसार नित्य पुल्लिंग वा स्त्रीलिंग होती हैं। उन्हें एक-लिंग कहते हैं। उदा०- नियम-विरुद्ध शब्द।