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पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१४

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(११)

कंठोष्ठ्य--जिनका उच्चारण कंठ और ओठों से होता है; अर्थात् ओ, औ।

दंतोष्ठ्य--जिनका उच्चारण दाँतों और ओठों से होता है; अर्थात् व।

(१) स्वर

२७--उत्पत्ति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं--(१), मूल-स्वर और (२) संधि-स्वर।

(१) जिन स्वरों की उत्पत्ति किसी दूसरे स्वर से नहीं है, उन्हें मूल-स्वर (वा ह्रस्व) कहते हैं। वे चार हैं-- अ, इ, उ और ऋ।

(२) मूल-स्वरों के मेल से बने हुए स्वर संधि-स्वर कहलाते हैं; जैसे, आ, ई, ए, ऐ, ओ, औ।

२८--संधि-स्वरों के दो उपभेद हैं--(१) दीर्घ और (२) संयुक्त।

(१) किसी एक मूल-स्वर में उसी मूल-स्वर के मिलाने से जो स्वर उत्पन्न होता है, उसे दीर्घ कहते हैं; जैसे, अ+अ = आ, इ+इ = ई, उ+ऊ = ऊ, अर्थात् आ, ई, ऊ दीर्घ स्वर हैं।

[सूचना-ऋ+ऋ = ऋृ, यह दीर्घ स्वर हिंदी में नहीं है।]

(२) भिन्न भिन्न स्वरों के मेल से जो स्वर उत्पन्न होता है, उसे संयुक्त स्वर कहते हैं; जैसे, अ+इ = ए, अ+उ =ओ।

२९--जाति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं--सवर्ण और उपसवर्ण अर्थात् सजातीय और विजातीय। समान