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पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१५

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स्थान से उत्पन्न होनेवाले स्वरों को सवर्ण कहते हैं। जिन स्वरों के स्थान एक से नहीं होते, वे असवर्ण कहलाते हैं। अ, आ परस्पर सवर्ण हैं। इसी प्रकार इ, ई तथा उ, ऊ सवर्ण हैं। अ, इ वा अ, ऊ अथवा इ, ऊ असवर्ण स्वर हैं।

[ सूचना—ए, ऐ, ओ, औ, इन संयुक्त स्वरों में परस्पर सवर्णता नहीं है; क्योंकि ये असवर्ण स्वरों से उत्पन्न हैं। ]

३०——उच्चारण के अनुसार स्वरों के दो भेद और हैं—

(१) सानुनासिक (२) निरनुनासिक।

यदि मुँह से पूरा पूरा श्वास निकाला जाय तो शुद्ध——निरनुनासिक——ध्वनि निकलती है; पर यदि श्वास का कुछ भी अंश नाक से निकाला जाय, तो अनुनासिक ध्वनि निकलती है। अनुनासिक स्वर का चिह्न (ँ) चंद्रबिंदु कहलाता है; जैसे——गाँव, ऊँचा। अनुस्वार और अनुनासिक व्यंजनों के समान चंद्रबिंदु कोई स्वतंत्र वर्ण नहीं है; वह केवल अनुनासिक स्वर का चिह्न है।

३१——हिंदी में ऐ और औ का उच्चारण संस्कृत से भिन्न होता है। तत्सम शब्दों में उनका उच्चारण संस्कृत के ही अनुसार होता है; पर हिंदी में ऐ अय् और औ अव् के समान बोला जाता है; जैसे——

संस्कृत——मैनाक, सदैव, ऐश्वर्य, पौत्र, कौतुक।

हिंदी——है, कै, मैल, सुनै, और, चौथा।